अंतरिक्ष का ज्यादातर हिस्सा खाली माना जाता है जिसमें धूल, ग्रह, तारा, हवा या गैस तक नहीं होती है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि अंतरिक्ष में जाने वाले अधिकांश लोगों, जिन्होंने स्पेस वॉक के जरिए अंतरिक्ष में कुछ समय गुजारा है, को अंतरिक्ष की कोई गंध क्यों महसूस होती है. जबकि उन्होंने तो अपनी सूंघने की क्षमता महसूस करने वाले अंग नाक को भी खुले अंतरिक्ष में उजागर नहीं किया होता है.
पूर्णतः निर्वात अंतरिक्ष में तो नहीं गया है कोई
सबसे पहले तो हम यह साफ तौर पर जान लें कि जिस अंतरिक्ष कि बात होती है वह हमारे सौरमंडल का अंतरिक्ष होता है. और जो अंतरिक्ष यात्री जिस अंतरिक्ष की बात करते हैं वे इसी अंतरिक्ष की बात करते हैं. ऐसा लगता है कि इसी अंतरिक्ष की वाकई गंध होती है. ऐसा लगने के कई कारक होते हैं.
लगता है कि गंध तो है
हैरानी की बात लगती है, लेकिन अंतरिक्ष में नाक बाहर निकालने बिना भी अंतरिक्ष यात्रियों का मानना है कि अंतरिक्ष की कोई गंध जरूर होती है. खासतौर से जब भी अंतरिक्ष यात्री स्पेस वॉक से लौटकर एयरलॉक क्षेत्र में लौटते हैं उन्हें एक असामान्य गंध सूंघने को मिलती है जो कि समान्य समय में एयरलॉक में महसूस नहीं होती.
ऑक्सीकरण की प्रक्रिया तो नहीं
एक सिद्धांत कहता है कि इसकी वजह हो अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेसवॉक से लौटने के बाद एयरलॉक के हिस्से में होने वाली प्रक्रियाओं में हो सकती है. एयरलॉक में री प्रेशराइजिंग के दौरान ऑक्सीकरण की प्रक्रिया होती है. इसमें यात्रियों के स्पेस सूट से चिपके ऑक्सीजन के अणु एयर लॉक में तैरते हैं और आपस में प्रतिक्रिया कर वायुमंडलीय ऑक्सीजन बनाते हैं यह बिलकुल धातु के जलने जैसी प्रक्रिया होती है जिससे अंतरिक्ष यात्रियों को जलती धातु की गंध सी महसूस होती है.
एक धातु की गंध की तरह
अंतरिक्ष यात्री डॉन पेटिट ने लिखा है कि इसकी सबसे अच्छी व्याख्या के तौर पर वे यही कह सकते हैं कि यह गंध धातु की गंध लगती है जो एक खुशनुमा मीटी धातु के होने का अहसास देती है. स्पेसडॉटकॉम के मुताबिक वे बताते हैं कि इससे उन्हें अपने कॉलेज की गर्मियों का मौसम याद आता है जब उन्होंने आर्क वेल्डिंग टॉर्च के साथ भारी उकरणों के बीच कई घंटों का समय बिताया था. इससे उन्हें उस समय की वेल्डिंग गुबार की खुशनुमा मीठी गंध की याद आ गई थी.